मोदी सरकार के खिलाफ 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस ने भी तैयारी शुरू कर दी है. 19 दिसंबर को दिल्ली में करीब 28 दलों के साथ इंडिया गठबंधन की बैठक हुई, जिसमें कई मुद्दों पर सहमति बनी. कांग्रेस यह बात जानती है अगर मोदी से मुकाबला करना है तो इंडिया गठबंधन को एक मंच पर रखना होगा. गठबंधन के अंदर जो अंदरूनी जंग है, उसे हर हाल में खत्म करना होगा और मुकाबला ऐसा बनाना होगा, जिससे टक्कर दिखाई दे. यानी बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का एक ही प्रत्याशी होना चाहिए और इसमें अगर कहीं भी चूक होती है तो मामला हाथ से निकल सकता है.
सूत्रों ने बताया कि इंडिया गठबंधन की बैठक से पहले कांग्रेस भी होमवर्क कर चुकी है और वह लोकसभा चुनावों में 310 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि इंडिया गठबंधन के दूसरे दलों के लिए 240 सीट छोड़ना चाहती है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस यूपी में 15-20, महाराष्ट्र में 16-20, बिहार में 6-8, पश्चिम बंगाल में 6-10, झारखंड में 07, पंजाब में 06, दिल्ली में 03, तमिलनाडु में 08, केरल में 16, जम्मू-कश्मीर 02 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है.
बारी-बारी से नेताओं के साथ मंथन
इसके लिए मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी बारी-बारी से राज्यों के नेताओं के साथ मंथन कर रहे हैं. 18 दिसंबर को कांग्रेस के 40 नेताओं साथ दोनों नेताओं ने बैठक की और इस बारे में राज्य से फीडबैक लिया गया कि जमीन पर किस पार्टी के साथ गठबंधन से कितना फायदा हो सकता है. वहीं पंजाब में कांग्रेस के नेता परगट सिंह का बैठक के अगले ही दिन बयान आ गया कि आप के साथ किसी भी तरह का गठबंधन प्रदेश में नहीं होगा. पंजाब में सत्ता पक्ष में आम आदमी पार्टी है और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस है.
पंजाब में गठबंधन नहीं हो सकता
परगट सिंह ने कहा कि गठबंधन की बात कोई बुरी नहीं है, लेकिन जो पंजाब की राजनीतिक स्थिति है उसको देखते हुए यहां पर गठबंधन नहीं हो सकता है. इसका कारण यह है कि पंजाब के लोगों ने हमें विपक्ष की भूमिका में रहने के लिए वोट किया है. इसके अलावा पंजाब में बीजेपी चौथे नंबर की पार्टी है और चौथे नंबर की पार्टी से पहले और दूसरे नंबर की पार्टी मिलकर लड़े तो यह कोई लॉजिक नहीं है. कांग्रेस अगर पंजाब में गठबंधन करती है तो इससे पार्टी को नुकसान होगा.
पश्चिम बंगाल कांग्रेस नेताओं की बैठक
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे पश्चिम बंगाल कांग्रेस नेताओं की बैठक होनी है, जिसमें उनके सामने सवाल यह है कि सीपीएम और टीएमसी के साथ कैसे केमेस्ट्री बनाकर रखी जाए जोकि बंगाल में चुनाव लड़ने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. ऐसा नहीं है कांग्रेस के साथ सिर्फ बंगाल में ही यह परेशानी है, बल्कि कई ऐसे राज्य भी है जहां पर उनके खुद के नेता क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करने के पक्ष में नहीं है. हालांकि यह कांग्रेस की मजबूरी है, क्योंकि पिछले 6 लोकसभा चुनावों को देखें तो क्षेत्रीय पार्टियों की बड़ी भूमिका के बारे में पता चलता है.
क्षेत्रीय दलों की ताकत
1998 में हुए लोकसभा चुनावों में 220 सीटें ऐसी थीं, जिनपर न तो बीजेपी जीत पाई थी और ना ही कांग्रेस जीत पाई. यहां पर किसी तीसरी पार्टी का दावा मजबूत रहा. इसी तरह 1999 में 247 सीट, 2004 में 260 सीट, 2009 में 221 सीट, 2014 में 217 सीट और 2019 में 188 सीटों पर किसी अन्य दल का प्रत्याशी जीता. यानी पिछले 6 लोकसभा चुनावों का अगर औसत निकाला जाए तो 225 सीटें ऐसी रहीं, जहां पर कांग्रेस या बीजेपी के अलावा किसी तीसरे दल का दबदबा रहा.
इसमें कुछ दल ऐसे हैं जो बीजेपी के साथ है, कुछ दल ऐसे हैं जो इंडिया गठबंधन में शामिल हैं और कुछ दल ऐसे भी हैं जो किसी के साथ नहीं हैं. कांग्रेस की नजर भी ऐसे ही क्षेत्रीय दलों पर है, जिनके सहारे वह 2024 में बीजेपी को दिल्ली की कुर्सी से उतारने का प्लान बना रही है.
क्षेत्रीय दलों के आगे कांग्रेस मजबूर
क्षेत्रीय दलों के आगे कांग्रेस कितनी मजबूर है, इसका उदाहरण कल की बैठक में अरविंद केजरीवाल द्वारा लिया गया खरगे का नाम भी है. क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ है जब इंडिया गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद उनकी तरफ से पीएम का चेहरा कौन होगा यह भी क्षेत्रीय दल तय कर रहे हैं. केजरीवाल का समर्थन ममता बनर्जी ने भी किया और इस बात से एक बात साफ होती है कि वह राहुल गांधी के नाम पर सहमत नहीं होंगे. हालांकि अपना नाम उठने के बाद खरगे ने सिर्फ यह कहा कि जीतने के बाद ही पीएम उम्मीदवार का नाम तय होगा.